साम्प्रदायिक निर्णय के समय गाँधी जी पूना के यरवटा जेल में थे। गाँधी जी ने इस घोषणा का प्रबल विरोध किया और अपनी माँग मनवाने के लिए 20 सितम्बर, 1932 ई० से जेल में आमरण अनशन पर बैठ गए। अनशन के कारण
उनका स्वास्थ्य काफी तेजी से गिरने लगा। मदन मोहन मालवीय, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, पुरुषोत्तम दास और राज गोपालाचारी के प्रयासों से गाँधी जी और अम्बेडकर के मध्य 26 सितम्बर, 1932 ई० को एक समझौता हुआ, जिसे “पूना समझौता” के नाम से जाना जाता है।
इसके अन्तर्गत दलित वर्गों के पृथक् निर्वाचक मण्डल समाप्त कर दिये गए, लेकिन प्रांतीय विधान मण्डलों में दलित वर्गों के लिए सुरक्षित सीटों की संख्या 71 से बढ़ाकर 147 कर दी गई। केन्द्रीय विधान मण्डल (सेन्ट्रल लेजिस्लेचर) में हरिजनों के लिए सुरक्षित सीटों की संख्या में 18 प्रतिशत की वृद्धि की गई।